major side effect of love

ये थोड़ा अजीब है लेकिन एहसासों की कुछ गलतियां है ये अनुभब जिसे लोग तरह तरह के नाम दिया करटे हैं कभी कभी लोग इसे गलतियां तो कभी एक अपने जिंदगी के सबसे बेहतरीन लम्हो के नाम दे दिया करते हैं तो यही से शुरू करते हैं.......................
"कहीं ना कहीं ये बात सच है , की हमरे अनुभब ही हमारे सबसे बड़े अध्यापक होते हैं इसलिए अगर मैं ये सब से आपको परिचित करा रही  हूँ , तो ये भी मेरे अनुभब की दास्ताँ है | लोग सही कहते हैं   की लव यानी प्यार की कोई सूरत कोई पहचान नहीं होती ये उस आजाद बहने बाली हवा की जैसे होता है जिसके के लिए किसी जगह पैर बहने से कोई रोक नहीं सकता | इस हवा की नमी से हर एक दामन गीला है , जमाने की तरह बदल गया है अंदाज़ लोगों का जैसे खुसबू की जगह फूल भी आज कल बस रंगो से मनहोने लगे हैं अगर हम ये कहें की किसी का साथ किसी की यादें या किसी का प्यार गलत है , लेकिन आज के टाइम में लोग और बो एहसास बदल गए हैं अब आशिकों  की गली खाली और महखाने भरने लगे हैं , रंगीले बादलों पर  सिगरेट के धुओं  का बदल है हर चौराहे पे कोई न कोई आज भी पागल है , जो किसी की एक झलक देखने को घंटों से गली के बहार खड़ा है बो बिलकुल अनजान है हर अच्छे और गलत से उसे परहेज नहीं है की बो बापस मुड के भी न देखे लेकिन दिल की गली म उसकी हाजिरी ही काफी होती है , अनजान होक मिलते हैं बड़ा भरोसा दिलाते हैं अपनेपन का लेकिन बो भी बस कुछ उनकी परछाई के साथ तक ही रहता है ,ये एक बोहत अजीब दिन था जब मुझे इस एहसास की झलक मुझमे दिखी ,आज भी नहीं बता सकती की दिन खराब था मी लिए या अच्छा लेकिन कोई दूर से मानो मेरी खुशियों की चाबी भर गया बात अलग है की मन भरा भी नहीं और चाबी ख़तम हो गयी , खान मिलते हैं आज की डेट में बो अजनबी जो मिला लेते हैं एक बहती नदी को खुद के समुन्द्र में ..............बताने को बोहत कुछ है पर समय की जख्मी है | कब भूल जाते हैं हम खुद को खुद की प्रायोरिटी कब कोई खाश बी ान जाता है क्या हक़ है उसे जो हमारी अच्छी भली जिंदगी म आके एक भूचाल सा मचाके और गुमसुम सा चला जाता है |
 आखिर किसने उनको ये हक़ दिया है , हमारी अकेली सही ,,लेकिन अच्छी भली दखलंदाजी करके चले जाते हैं ..
और जाने के बाद फिर से उस की दरबाजे खटकटाते हैं और फिर कुछ दिन बाद उनकी कॉल अति है या कुछ भी कह लो बो बस एक बुलाबा होता है
 


 कुछ बयान हैं इन शांत आँखों में जो कुछ दांस्ता कहते हैं  अभी बंद हुआ है ये सिलसिला और ये उन्हें सदियां कहते हैं ..
जिंदगी की इस रेस में बोहत मोड़ आते हैं ,उन मोड़ो पर ये जिंदगी की गाड़ी न ज्यादा तेज न ही ज्यादा हलके चलते हैं क्यूंकि बहान हमारा गिरना तय होता है और हम उस रेस म बोहत पीछे झूट जाते हैं और फिर एक दोराहे पैर खड़े होकर ये तय करना पड़ता हैं की किस ओर जाना चाइये , एक ओर तो अपने और सपने हैं तो दूसरी और बो बेगाना जो अभी अभी अपना सबकुछ  हुआ है , ऐसे मोड़ो पैर अक्सर इंसान खुद अकेला पता है और हज़ारों मुसाफिर कुछ लम्हे थम जाना चाहते हैं , इस कुछ देर रुकने को अक्सर जीते हुए लोग बर्बादी ,नाकामी , खुदगर्ज़ी न जाने कैसे कैसे नाम देते हैं उनको भला कौन समझाये बो ठोकर लगी थी जोर की जिसकी दहसत में बो अभी सहमा हुआ है, बो अभी हारा नहीं है बस कमी कुछ है तो बस इस बात की ऊके पास इस मोड़ पे कोई सहारा नहीं है |  बो बोहत अकेला खुद से लड़ता है ये जानने को ये बताने को किस को दिए गए बादे को निभाएं बो कंधे आज भी मेरी जिम्मेदारी से झुके हुए दिन रात बिना थके बस मेरी तरक्की की कोसिस में लगे हैं बो कोमल हाथ जो रसोई म आज भी मेरे लिए कुछ मेरा मन पसंदीदा कुछ बना रहे होंगे ,उनकी हर खुशियां बस और बस मुझसे जुडी हैं ,या बो हमसफ़र जिसके साथ मेरी कई शामे घूमने फिरने , रूठने मनाने म बीती हैं जो पास हो तो बस लगता है मैं पूरी दुनिया से लड़ लूंगा , ..ये एक ऐसा सपना है जिसके सच होने की इच्छा करूं तो उन हज़ारों सपनो का गाला घोट दो जो मुझसे लोगों के लगे हैं ...
कुछ ऐसी होती है बो दूभिदा जिसमे आज हज़ारों ,लाखों  लोग फंसे हैं , जो निकल गए बो जीते जरूर हैं लेकिन   बोहत खाली हैं अंदर से ...चेहरे उनके बनाबटी हैं , लेकिन उनकी कामयाबी का पर्दा सब थक लेता है ...बदनाम  तो हम हुए हैं ,न मंजिल मिली न मुसफिर बस महखाने के मुखातिब हुए हुए हैं,
लोगों की लगती होगी हाज़रियाँ दफ्तर के दरबाजों पर  ...हमारी तो लगती है उनके बस एक बार हंस के देख जाने पर

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